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किमत्र॑ दस्रा कृणुथ॒: किमा॑साथे॒ जनो॒ यः कश्चि॒दह॑विर्मही॒यते॑। अति॑ क्रमिष्टं जु॒रतं॑ प॒णेरसुं॒ ज्योति॒र्विप्रा॑य कृणुतं वच॒स्यवे॑ ॥

English Transliteration

kim atra dasrā kṛṇuthaḥ kim āsāthe jano yaḥ kaś cid ahavir mahīyate | ati kramiṣṭaṁ juratam paṇer asuṁ jyotir viprāya kṛṇutaṁ vacasyave ||

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Pad Path

किम्। अत्र॑। द॒स्रा॒। कृ॒णु॒थः॒। किम्। आ॒सा॒थे॒। जनः॑। यः। कः। चि॒त्। अह॑विः। म॒ही॒यते॑। अति॑। क्र॒मि॒ष्ट॒म्। जु॒रत॑म्। प॒णेः। असु॑म्। ज्योतिः॑। विप्रा॑य। कृ॒णु॒त॒म्। व॒च॒स्यवे॑ ॥ १.१८२.३

Rigveda » Mandal:1» Sukta:182» Mantra:3 | Ashtak:2» Adhyay:4» Varga:27» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:24» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (दस्रा) दुःख के नाश करनेवाले अध्यापक उपदेशको ! तुम (यः) जो (कः, चित्) कोई ऐसा है कि (अहविः) जिसके लेना वा भोजन करना नहीं विद्यमान है वह (जनः) मनुष्य (महीयते) अपने को त्याग बुद्धि से बहुत कुछ मानता है उस (वचस्यवे) अपने को वचन की इच्छा करते हुए (विप्राय) मेधावी उत्तम धीरबुद्धि पुरुष के लिये (ज्योतिः) प्रकाश (कृणुतम्) करो अर्थात् विद्यादि सद्गुणों का आविर्भाव करो और (पणेः) सत् और असत् पदार्थों का व्यवहार करनेवाले जन की (असुम्) बुद्धि को (अति, क्रमिष्टम्) अतिक्रमण करो और (जुरतम्) नाश करो अर्थात् उसकी अच्छे काम में लगनेवाली बुद्धि का विवेचन करो और असत् काम में लगी हुई बुद्धि को विनाशो तथा (किम्) क्या (अत्र) इस व्यवहार में (आसाथे) स्थिर होते और (किम्) क्या (कृणुथः) करते हो ? ॥ ३ ॥
Connotation: - अध्यापक और उपदेशक जैसे आप्त विद्वान् सबके सुख के लिये उत्तम यत्न करता है, वैसे अपना वर्त्ताव वर्त्ते ॥ ३ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे दस्राऽध्यापकोपदेशकौ युवां यः कश्चिदहविर्जनो महीयते तस्मै वचस्यवे विप्राय ज्योतिः कृणुतम्। पणेरसुमतिक्रमिष्टं जुरतं च किमत्रासाथे किं कृणुथश्च ॥ ३ ॥

Word-Meaning: - (किम्) (अत्र) अस्मिन् व्यवहारे (दस्रा) दुःखोपक्षयितारौ (कृणुथः) (किम्) (आसाथे) उपविशथः (जनः) मनुष्यः (यः) (कः) (चित्) अपि (अहविः) अविद्यमानं हविरादानमदनं वा यस्य सः (महीयते) आत्मानं त्यागबुद्ध्या बहु मनुते (अति) (क्रमिष्टम्) अतिक्रमणं (जुरतम्) रुजतं नाशयतम् (पणेः) सदसद्व्यवहर्त्तुः (असुम्) प्रज्ञाम् (ज्योतिः) प्रकाशम् (विप्राय) मेधाविने (कृणुतम्) (वचस्यवे) आत्मनो वचइच्छवे ॥ ३ ॥
Connotation: - अध्यापकाऽध्येतारौ यथाऽप्तो विद्वान् सर्वेषां सुखाय प्रयतते तथा वर्त्तेयाताम् ॥ ३ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जसा आप्त विद्वान सर्वांच्या सुखासाठी उत्तम प्रयत्न करतो तसे अध्यापक व उपदेशकांनी आपले वर्तन ठेवावे. ॥ ३ ॥